आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ।।
अर्थ : जिस प्रकार आकाशसे गिरा जल
विविध नदियों के माध्यम से अंतिमत: सागर से जा मिलता है उसी प्रकार सभी
देवताओंके लिए किया हुआ नमन एक ही परमेश्वरको प्राप्त होता है ।
शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ।।
अर्थ : हर एक पर्वतपर माणिक नहीं
होते, हर एक हाथी में (उसके गंडस्थलमें ) मोती नहीं मिलते साधु सर्वत्र
नहीं होते । हर एक वनमें चंदन नहीं होता दुनियामें अच्छी चीजें अधिक
मात्रामें नहीं मिलती ।
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